Monday, April 7, 2014

मुनव्वर राणा की दो गज़लें

1.
इसी गली में वो भूखा किसान रहता है
ये वो जमीं है जहाँ आसमां रहता है
 
मै  डर  रहा हूँ हवा से ये पेड़ गिर न पड़े
कि इसपे चिड़ियों का एक खानदान रहता है

सड़क पर घूमते पागल की तरह दिल है मेरा
हमेशा चोट का ताजा निशान रहता है

तुम्हारे ख्वाबों से आँखे महकती रहती है
तुम्हारी याद से दिल जाफरान रहता है

2.
माँ
लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती !
बस एक माँ है जो कभी खफ़ा नहीं होती !!

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है !
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है !!

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू !
 मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना !!

अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ  भी नहीं होगा !
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है  !!

जब भी कश्ती मेरी सैलाब मैं आ जाती  है !
माँ दुआ करती हुई ख्वाब मैं आ जाती है !!

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