ऐसी गाँठ बंधी अंतस में ,
चाहा भी तो खोल न पाया !
कभी समय पर सोच न पाया
कभी समय पर बोल न पाया !
भीतर-भीतर फाँस समेटे
बाहर-बाहर हँसी तुम्हारी ,
तुम से मिलना , उत्सव ऐसा
रातें रूठी पलकें भारी ,
मिला मुझे आकाश नमन का
मैं अपने पर तोल न पाया !
वे परम्परा के आभूषण
भार हो गए रिश्ते-नाते
धारण करते जी डरता था
खोने का भय , आते-जाते ,
फूलों के ज़ेवर जो सोचे
बाज़ारों में मोल न पाया !
बार-बार शब्दों का चुनना
बार-बार उनमें संशोधन ,
दो होठों के बीच रह गये
फागुन की आहट आयी भी
टेसू के रंग घोल न पाया !
चाहा भी तो खोल न पाया !
कभी समय पर सोच न पाया
कभी समय पर बोल न पाया !
भीतर-भीतर फाँस समेटे
बाहर-बाहर हँसी तुम्हारी ,
तुम से मिलना , उत्सव ऐसा
रातें रूठी पलकें भारी ,
मिला मुझे आकाश नमन का
मैं अपने पर तोल न पाया !
वे परम्परा के आभूषण
भार हो गए रिश्ते-नाते
धारण करते जी डरता था
खोने का भय , आते-जाते ,
फूलों के ज़ेवर जो सोचे
बाज़ारों में मोल न पाया !
बार-बार शब्दों का चुनना
बार-बार उनमें संशोधन ,
दो होठों के बीच रह गये
फागुन की आहट आयी भी
टेसू के रंग घोल न पाया !
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