Sunday, June 8, 2014

अए गमे-दिल ! साथ मेरे तू कहाँ तक जाएगा ! - प्रोफे.राम स्वरुप 'सिन्दूर'

अए गमे-दिल ! साथ मेरे तू कहाँ तक जाएगा !
मैकदे तक जाएगा , या आस्ताँ तक जाएगा !

खोज कर हारा न पाया आज तक उसका पता ,
पर मेरा बेलौस नाला जाने-जां तक जाएगा !

रह गया तनहा मुसाफ़िर-जैसा मीरे-कारवाँ ,
वो उफ़ुक के पार , यानी बेकराँ तक जाएगा !

कारबां का हर मुसाफ़िर अपनी मंजिल पा गया ,
राहबर से कौन पूछे , तू कहाँ तक जाएगा !

हमसफ़र को भी यकीं , 'सिन्दूर' है भटका हुआ ,
रास्ता कोई भी हो मेरे मकां तक जाएगा !


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