Monday, June 16, 2014

मन रे तुम घमंड में भूले - कृष्ण मुरारी पहारिया

मन रे तुम घमंड में भूले
पायी संपति , ख्याति बटोरी
सो कुप्पा से फूले

कैसे तने-तने चलते हो
देख रही है बस्ती
लेकिन तुमको होश नहीं है
छायी ऐसी मस्ती

सबकी आँखों में गड़ती है
मद में फूली छाती
चाल वही चलिए दुनिया
जो है आती-जाती

लेकिन जो सावन के अंधे
भर-भर पेंगें झूले

अपना तुम आदर्श बघारो
अपनी कथा सुनाओ
सबकी नैतिकता को नापो
ओछी सदा बताओ

प्रवचन सदा तुम्हारा चलता
ऐसी ठेकेदारी
नहीं सोचते कब किसके जी
पर पड़ती है भारी

कहीं चमेटा लगा अगर तो
हो जाओगे लूले

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