Friday, June 20, 2014

बाबूजी , आपने लिखा - अनिल सिन्दूर

बाबूजी ,
आपने लिखा
'जो असंभव था, उसे  संभव  किया मैनें
तब कहीं सिन्दूर का जीवन जिया मैंने '
तुमने जो लिखा उसे ही जीवन में जिया
ये दावा तुमने किया हो या नहीं
मैं महसूस करता हूँ
इस दावेदारी में तुम खरे उतरे !
पूरी दुनिया के पिता चाहते हैं
हारना अपने बेटे से
लेकिन तुमने असंभव को संभव कर
बेटे को ही हरा दिया
तुमने एक मिशाल कायम की है
अपने लिखे को सत्य किया है
लेकिन
न करे कोई पिता ऐसा असंभव
कामना है उस खुदा से ...............

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