मै फिर भी कविता लिखती हूँ
मैने नहीं लिखे इश्क के अफ़साने,
मैने नहीं बुने प्यार के ताने-बाने,
मै फिर भी कविता लिखती हूँ।
मैने नहीं किया किसी का इंतज़ार,
मैन नहीं काटी कोई आँखों मे रात,
मै फिर भी कविता लिखती हूँ।
मेरे अतीत मे कुछ ऐसा है ही नहीं,
मुडकर जो देखूँ लिखूं बार बार,
मै फिर भी कविता लिखती हूँ।
मेरी सोच, तर्क, विवेक बुद्धि,
सबका है वैज्ञानिक आधार,
मै फिर भी कविता लिखती हूँ।
मेरी कविता मे प्रकृति है,
मेरी कविता मे संसकृति है,
मै वो ही लिखती पढ़ती हूँ।
मेरी कविता मे ईश्वर है,
मंदिर मे नहीं वह मन मे है ,
प्रभु दर्शन प्रकृति मे करती हूँ।
मै फिर भी कविता लिखती हूँ।
मैने नहीं लिखे इश्क के अफ़साने,
मैने नहीं बुने प्यार के ताने-बाने,
मै फिर भी कविता लिखती हूँ।
मैने नहीं किया किसी का इंतज़ार,
मैन नहीं काटी कोई आँखों मे रात,
मै फिर भी कविता लिखती हूँ।
मेरे अतीत मे कुछ ऐसा है ही नहीं,
मुडकर जो देखूँ लिखूं बार बार,
मै फिर भी कविता लिखती हूँ।
मेरी सोच, तर्क, विवेक बुद्धि,
सबका है वैज्ञानिक आधार,
मै फिर भी कविता लिखती हूँ।
मेरी कविता मे प्रकृति है,
मेरी कविता मे संसकृति है,
मै वो ही लिखती पढ़ती हूँ।
मेरी कविता मे ईश्वर है,
मंदिर मे नहीं वह मन मे है ,
प्रभु दर्शन प्रकृति मे करती हूँ।
मै फिर भी कविता लिखती हूँ।
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