चांदी के कलकारी दिन
रातों के घर बंधुआ बैठे
बच्चों से बेगारी दिन
खूनी तारीखें बन कर अब
आते हैं त्यौहारी दिन ।
पेट काट कर बाबा ने जो
जमा किये थे बरसों में
उड़ा दिये दो दिन में
हमने चाँदी के कलदारी दिन।
नौन तेल के बदले हमने
दिया पसीना जीवन भर
फिर भी खाता खोले बैठे
बेईमान पंसारी दिन।
कोर्ट कचहरी उमर कट गयी
मिसिल न आगे बढ़ पायी
जाने कब आते जाते ये
घूसखोर सरकारी दिन।
पैदा हुए उसूलों के घर
उस पर कलम पकड़ बैठे
वरना क्या मुष्किल थे हमको
सत्ता के दरबारी दिन।
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