Sunday, June 15, 2014

बेटी का अपने पापा को खत - दिव्या शुक्ला

बेटी का अपने पापा को ख़त
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कैसे याद करूँ जब कभी भूले ही नहीं आप
याद तो उसे किया जाता है जिसे भूले हो
बेटियां पिता का मान होती है पिता बेटी का अभिमान
औरों की तो नहीं जानते पर मैने हमेशा पापा जैसा पति चाहा था
आप का जाना सर से छत का उड़ जाना था

लगता था जैसे हर कोई
जान गया मेरे पापा नहीं रहे

जीवन की कड़ी धूप में घनी बरगद की छाँव थे आप

आप के लाड प्यार ने शायद कुछ-कुछ जिद्दी भी बना दिया मुझे
हालांकि कभी यह बात मानी नहीं मैने
मुझे बिगाड़ने का इलज़ाम भी आप पर ही लगे

पर यह सब जानते हैं
आप जैसी ही हूँ मै

आप में वह सब कुछ था जो एक सम्पूर्ण पुरुष में होना चाहिए
जिस पर मुझे हंमेशा गर्व रहा

पता है आपको, आपके बिना वो घर बहुत खाली है
बाईस सालों में सिर्फ दो बार गई आपकी बेटी मायके 

वहां आप जो न मिलते
पर आप हो न मेरे साथ 

हमेशा रहना आपके बिना कमजोर पड़ जाती है 
आपकी यह बिटिया, आपको पता है आपसे बहुत नाराज़ हूँ मै
आप बिना बताये अचानक न जाने कहाँ चले गए 

वहां जहाँ से आपको खोज कर
ला भी नहीं सकते -- बहुत खराब है आप पापा

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