कुछ झुका/होंठों पे प्यास देख गया था - सुलक्षणा दत्ता
1.
कुछ झुका/होंठों पे प्यास देख गया था
आँखों से धरती की
एक बूँद ओस कल
आसमान ले गया था
रात बादल बन
झमाझम बरसा......
शहर भिगो डाला!!
क्यूँ रे आवारा
इतना प्यार क्यूँ.........???
2.
छोटे से कोने में
दिल के
ख़ामोशी से
सांस लेता
धड़कता
जीता है
साथ मेरे......
एक आईना.....
वो टूटने के बाद/हुआ है आबाद.....!
कमाल की रचनाएँ हैं !
ReplyDelete