Saturday, May 10, 2014

गीत जिस में आ रही दुर्गन्ध कुछ-कुछ याचना की - रामावतार त्यागी

गीत जिस में आ रही दुर्गन्ध कुछ-कुछ याचना की
लिख गया होगा कभी यह स्वर मगर मेरा नहीं है !

प्यार , आंसू, मन, सृजन को छोड़ कर मैं
जो झुका तो देवता के ही चरण में ,
मैं कलंकित क्यों कि मैं यह कह न पाया
जी रहा हूँ मैं तुम्हारी ही शरण में

चटखनी ख़ुद ही खरीदी और ताले भी नये हैं
रह रहा हूँ कुछ समय से घर मगर मेरा नहीं है -

आप शायर या सुकवि जितने बड़े हों
गा रहें हैं आप लेकिन दर्द मेरा ,
एक सपना , लाश मैं जिसकी उठाये घूमता हूँ
काश मिल जाता किसी मन में बसेरा ,

जो तुम्हारे पाँव पर लेटा हुआ-सा दिख रहा हूँ
गो-कि मिलता तो बहुत है सर मगर मेरा नहीं है -

गीत मेरा शौक या पेशा नहीं है
गीत से मैं आदमी को खोजता हूँ ,
हर किसी की आँख की लेता तलाशी
जो विरल है उस नमी को खोजता हूँ ,

उस तुम्हारे पत्र को पढ़ कर कहीं बस रख दिया था
भूख ने जो भी दिया उत्तर मगर मेरा नहीं है !

 

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