यह मधुर मधुवंत वेला
मन नहीं अब है अकेला ,
स्वप्न का संगीत ,
कंगन की तरह खनका !
साँझ रंगारंग है यें ,
मुस्कराता अंग है ये ,
बिन बुलाये आ गया
मेहमान यौवन का !
प्यार कहता है डगर में ,
बह नहीं जाना लहर में ,
रूप कहता झूम जा ,
त्यौहार है तन का !
घट छलक कर डोलता है ,
प्यास के पट खोलता है ,
टूट कर बन जय निर्झर ,
प्राण पहन का !
मन नहीं अब है अकेला ,
स्वप्न का संगीत ,
कंगन की तरह खनका !
साँझ रंगारंग है यें ,
मुस्कराता अंग है ये ,
बिन बुलाये आ गया
मेहमान यौवन का !
प्यार कहता है डगर में ,
बह नहीं जाना लहर में ,
रूप कहता झूम जा ,
त्यौहार है तन का !
घट छलक कर डोलता है ,
प्यास के पट खोलता है ,
टूट कर बन जय निर्झर ,
प्राण पहन का !
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