पेड़ से हम अलग
टूटी डाल हैं !
या-कि टूटी
पत्तियों का ताल हैं !
पात टूटे, टूटती बौछार हो मन-प्राण टूटे ,
कुछ भले हो नहीं मिटते याद के वो बेलबूटे ,
हम कि अपनी
मुक्ति का ही जाल हैं !
है सदा हक़ में हमारे मौसमों का यह बदलना ,
व्यवस्था का बादल जाना और गिर-गिर कर सँभलना
बहुत अच्छा है
कि हम बेहाल हैं !
सुनो , पीली पत्तियों की बारिशों का शोर जागे ,
शाम जागे , दोपहर जागे कि कच्ची भोर जागे ,
हम चढ़ाईहैं ,
कि हम ही ढाल हैं !
टूटी डाल हैं !
या-कि टूटी
पत्तियों का ताल हैं !
पात टूटे, टूटती बौछार हो मन-प्राण टूटे ,
कुछ भले हो नहीं मिटते याद के वो बेलबूटे ,
हम कि अपनी
मुक्ति का ही जाल हैं !
है सदा हक़ में हमारे मौसमों का यह बदलना ,
व्यवस्था का बादल जाना और गिर-गिर कर सँभलना
बहुत अच्छा है
कि हम बेहाल हैं !
सुनो , पीली पत्तियों की बारिशों का शोर जागे ,
शाम जागे , दोपहर जागे कि कच्ची भोर जागे ,
हम चढ़ाईहैं ,
कि हम ही ढाल हैं !
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