Saturday, May 3, 2014

पेड़ से हम अलग टूटी डाल हैं ! - यश मालवीय

पेड़ से हम अलग
टूटी डाल हैं !
या-कि टूटी
पत्तियों का ताल हैं !

पात टूटे, टूटती बौछार हो मन-प्राण टूटे ,
कुछ भले हो नहीं मिटते याद के वो बेलबूटे ,
हम कि अपनी
मुक्ति का ही जाल हैं !

है सदा हक़ में हमारे मौसमों का यह बदलना ,
व्यवस्था का बादल जाना और गिर-गिर कर सँभलना
बहुत अच्छा है
कि हम बेहाल हैं !

सुनो , पीली पत्तियों की बारिशों का शोर जागे ,
शाम जागे , दोपहर जागे कि कच्ची भोर जागे ,
हम चढ़ाईहैं ,
कि हम ही ढाल हैं !


No comments:

Post a Comment