फिर रात ने रस्ता बदला है
फिर सुब्ह की चादर फैली है
फिर फूल खिले अरमानों के
फिर आस की खुश़बू महकी है
फिर अमन फ़िजा में गूंजा है
फिर गीत छिड़े उम्मीदों के
फिर सांस मिली कुछ ख़्वाबों को
फिर साज़ बजे तदबीरों के
ये किसने दुआएं बांधीं और
बंधन खोले ज़ंजीरों के
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