कौन बसा है दिल में मेरे , ये भी भूल गया हूँ मैं !
आँखों में सूरत न किसी की , किस को ढूढ़ रहा हूँ मैं !!
चार बड़ी सी दीवारों में , रहने को , रहता हूँ मैं !
ठौर-ठिकाना कोई पूछे , चुप कर रह जाता हूँ मैं !!
मंजिल मिल पाना मुश्किल था , वो ही पा ही ली मैंने ,
अब क्या है जो साँझ-सकारे , बच्चों सा रोता हूँ मैं !
सब कुछ भूल चूका था फिर भी , बाक़ी क्या-कुछ यादों में !
सोचा था , मर गया कभी का , लगता है ज़िन्दा हूँ मैं !
सोते में चलने की आदत , मुझको राहत देती है !
जाने किस को गाते-गाते , ख़ुद को गा उठता हूँ मैं !
मैं तन-मन के साथ रहा हूँ , तन-मन साथ रहे मेरे ,
अब ये छोड़ चले हैं मुझको , इन को छोड़ चला हूँ मैं !
इश्क़ कहे तू राजपुरुष है , अश्क कहे 'सिन्दूर' है तू !
दो छोरों पर फँसे तार का , बजता इकतारा हूँ मैं !
आँखों में सूरत न किसी की , किस को ढूढ़ रहा हूँ मैं !!
चार बड़ी सी दीवारों में , रहने को , रहता हूँ मैं !
ठौर-ठिकाना कोई पूछे , चुप कर रह जाता हूँ मैं !!
मंजिल मिल पाना मुश्किल था , वो ही पा ही ली मैंने ,
अब क्या है जो साँझ-सकारे , बच्चों सा रोता हूँ मैं !
सब कुछ भूल चूका था फिर भी , बाक़ी क्या-कुछ यादों में !
सोचा था , मर गया कभी का , लगता है ज़िन्दा हूँ मैं !
सोते में चलने की आदत , मुझको राहत देती है !
जाने किस को गाते-गाते , ख़ुद को गा उठता हूँ मैं !
मैं तन-मन के साथ रहा हूँ , तन-मन साथ रहे मेरे ,
अब ये छोड़ चले हैं मुझको , इन को छोड़ चला हूँ मैं !
इश्क़ कहे तू राजपुरुष है , अश्क कहे 'सिन्दूर' है तू !
दो छोरों पर फँसे तार का , बजता इकतारा हूँ मैं !
No comments:
Post a Comment