Tuesday, May 27, 2014

जो हममें तुममें हुई मुहब्बत.. - आलोक श्रीवास्तव

जो हममें तुममें हुई मुहब्बत..
तो देखो कैसा हुआ उजाला

वो खुशबूओं ने चमन संभाला
वो मस्जिदों में खिला तबस्सुम
वो मुस्कराया है फिर शिवाला

जो हममें तुममें हुई मुहब्बत..

तो लब गुलाबों के फिर से महके
नगर शबाबों के फिर से महके
किसी ने रक्खा है फूल फिर से
वरक़ किताबों के फिर से महके
जो हममें तुममें हुई मुहब्बत..

मुहब्बतों की दुकां नहीं है
वतन नहीं है, मकां नहीं है
क़दम का मीलों निशां नहीं है
मगर बता ये कहां नहीं हैं
कहीं पे गीता क़ुरान है ये

कहीं पे पूजा अज़ान है ये
सदाक़तों की ज़ुबान है ये
खुला-खुला आसमान है ये
तरक़्क़ियों का समाज जागा

के' बालियों में अनाज जागा
क़बूल होने लगी हैं मन्नत
धरा को तकने लगी हैं जन्नत
जो हममें तुममें हुई मुहब्बत..
जो हममें तुममें हुई मुहब्बत..

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