कह डाला , सब-कुछ संबोधन में !
जो कुछ था मन में अंतर्मन में !
बिखर गये हैं शब्द अक्षरों में ,
स्वर वापस हो गये तलघरों में ,
गिरि, तिनकों से उड़े प्रभंजन में !
कह डाला , सब-कुछ संबोधन में !
पलक-मारते जिया अतीतों को
गाया शून्य-तिरोहित गीतों को ,
यौवन , कालातीत रहा तन में !
कह डाला , सब-कुछ संबोधन में !
कुहरे ने अक्षय सामर्थ्य दिया ,
जो अरूप था उसको भी देख लिया ,
अंकित हुआ अनागत दर्पण में !
कह डाला , सब-कुछ संबोधन में !
जो कुछ था मन में अंतर्मन में !
बिखर गये हैं शब्द अक्षरों में ,
स्वर वापस हो गये तलघरों में ,
गिरि, तिनकों से उड़े प्रभंजन में !
कह डाला , सब-कुछ संबोधन में !
पलक-मारते जिया अतीतों को
गाया शून्य-तिरोहित गीतों को ,
यौवन , कालातीत रहा तन में !
कह डाला , सब-कुछ संबोधन में !
कुहरे ने अक्षय सामर्थ्य दिया ,
जो अरूप था उसको भी देख लिया ,
अंकित हुआ अनागत दर्पण में !
कह डाला , सब-कुछ संबोधन में !
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