Tuesday, February 3, 2015

अए गमे दिल ....................... प्रोफे. रामस्वरूप ‘सिन्दूर’




अए गमे दिल ! साथ मेरे तू कहाँ तक जाएगा !
मैकदे तक जाएगा, या  आस्ताँ  तक  जाएगा !

खोज कर हारा, न पाया आज तक उसका पता,
पर मेरा बेलौस नाला  जाने  जां  तक जाएगा !

रह गया तनहा मुसाफ़िर  जैसा  मीरे  कारवाँ,
वो उफ़ुक के पार  यानि  बेकराँ  तक जाएगा !


कारवाँ का हर मुसाफ़िर अपनी मंजिल पा गया,
राहबर से कौन  पूछे, तू  कहाँ  तक  जाएगा !

हमसफ़र को भी है यकीं ‘सिन्दूर’ है भटका हुआ,
रास्ता कोई  भी  हो  मेरे  मकाँ  तक  जाएगा !

प्रोफे. रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

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