Friday, May 16, 2014

समय की शिला पर मधुर चित्र कितने - शम्भु नाथ सिंह

समय की शिला पर मधुर चित्र कितने
किसी ने बनाये , किसी ने मिटाये !

किसी ने लिखी आंसुओं से कहानी ,
किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूंद पानी ,
इसी में गये बीत दिन ज़िन्दगी के
गयी घुल जवानी , गयी मिट निशानी
विकल सिन्धु से साथ के मेघ कितने
धरा ने उठाये , गगन ने गिराये !

शलभ ने शलभ को सदा ध्येय माना
किसी को लगा यह मरण का बहाना ,
शलभ जल न पाया , शलभ मिट न पाया
तिमिर में उसे पर मिला क्या ठिकाना ?
प्रणय-पंथ पर प्राण के दीप कितने
मिलन ने जलाये , विरह ने बुझाये !

भटकती हुई राह में वंचना की ,
रुकी शांत हो जब लहर चेतना की ,
तिमिर-आवरण ज्योति का वर बना जब
कि टूटी तभी श्रंखला साधना की ,
नयन-प्राण में रूप के स्वप्न कितने
निशा ने सुलाये , उषा ने जगाये !

सुरभि की अनिल-पंख पर मौन भाषा ,
उड़ी वंदना की जगी सुप्त आशा ,
तुहिन-बिंदु बन कर , बिखर पर गये  स्वर
नहीं बुझ सकी , अर्चना की पिपासा ,
किसी के चरण पर वरन फूल कितने
लता ने चढ़ाये , लहर ने बहाये !


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