Sunday, April 20, 2014

मेरे हुजरे में नहीं , और कहीं पर रख दो, आसमां लाये हो ले आओ , जमीं पर रख दो ! - राहत इन्दौरी

मेरे हुजरे में नहीं , और कहीं पर रख दो,
आसमां लाये हो ले आओ , जमीं पर रख दो !
अब कहाँ ढूड़ने जाओगे , हमारे कातिल ,
आप तो क़त्ल का इल्जाम , हमी पर रख दो !

उसने जिस ताक पर , कुछ टूटे दिये रखे हैं ,
चाँद तारों को ले जाकर , वहीँ पर रख दो !
दो गज ही सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है,
ऐ मौत तूने मुझको ज़मींदार कर दिया !

नयी हवाओं को  सौहबत बिगाड़ देती है,
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है !
वो जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते,
सज़ा न देकर अदालत बिगाड़ देती है !

मिलाना चाहा है जब भी इंसा को इंसा से
तो सारे काम सियासत बिगाड़ देती है !
सियासत में जरुरी है रवादारी समझता है ,
वो रोज़ा तो नहीं रखता मगर इफ्तारी समझता है !

अन्दर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गये ,
जितने शरीफ़ लोग थे सब खुलके आ गये !
सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफ ,
सारे सिपाही मोम के थे सब घुल के आ गये !!


8 comments:

  1. अब किस पर ऐतवार करें एक दिल ही अपना था बेगाना हो गया
    लोग कहते है ऐसा इश्क में होता है कही मुझे भी इश्क ही तो नहीं हो गया

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  2. Wah! Janab bahut khubsurat likha hai.

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  3. Laazbaab sir. ..Bahut khub likha hai aapne. .

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  4. Mere hujare me rakhdo ka agar koi matalab samjha sake to please batayiye... maine paheli line mukkammal kr li hai... baaki line me shayar kya kahena chahate hai wo batayenge to maherbaani ho jaayegi

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  5. हुजरे का मतलब होता है साधु या संत की झोपड़ी ।

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