Saturday, April 19, 2014

चेहरा एक , मुखौटे अनगिन इतने सभ्य हुये , - श्याम निर्मम

चेहरा एक , मुखौटे अनगिन
इतने सभ्य हुये ,
भीतर-भीतर बड़े घिनौने
बाहर भव्य हुये !

सांप नहीं पर ये साँपों से भी
हैं ज़्यादा जहरीले ,
है किस में इतनी मजाल जो

इनके डसे हुये को कीले ,
यों तो , इनकी कई जातियां
यही अलभ्य हुये !

पानीदार कहेंगे ख़ुद को
पर आँखों का पानी सूखा ,
छोड़ शराफ़त सभी डकारें

फिर भी पेट दिखायें भूखा ,
रीती गगरी में , जो छलके
ऐसे द्रव्य हुये !

अक्खडपन , फक्कडपन इनका
मूक बने सब नखरे सहते
ये तो हैं देवता सरीखे

हम मनुष्य कैसे संग रहते ,
दर्द आधुनिक , कथा वही पर
ये ही दिव्य हुये !

बड़े दिखेगें सीधे-सादे
पर बिल में भी चलते टेढ़े ,
राग अलापेंगे भैरव में
वार बड़े पर मोहक छेड़े ,
इन का बड़ा , हुआ है धोखा
सभी असभ्य हुये !


No comments:

Post a Comment