Wednesday, August 5, 2015

कुछ आंसू बन गिर जाएंगे, कुछ दर्द चिता तक जाएंगे, उनमें ही कोई दर्द तुम्हारा भी होगा ! - रमानाथ अवस्थी


कुछ आंसू बन गिर जाएंगे, कुछ दर्द चिता तक जाएंगे
उनमें   ही   कोई   दर्द   तुम्हारा   भी    होगा !

सड़कों पर मेरे पाँव हुए कितने घायल
यह बात गाँव की पगडंडी बतलायेग,
सम्मान-सहित हम सब कितना अपमानित हैं
यह चोट हमें जाने कब तक तड़पायेगी,
कुछ टूट रहे सुनसानों में कुछ टूट रहे तहखानों में
उनमें  ही  कोई  चित्र  तुम्हारा  भी  होगा !

वे भी दिन थे, जब मरने में आनन्द मिला
ये भी दिन हैं , जब जीने से घबराता हूँ ,
वे भी दिन बीत गये हैं , ये भी बीतेंगे
यह सोच किसी सैलानी-सा मुस्काता हूँ ,
कुछ अँधियारों में चमकेंगे , कुछ सूनेपन में खनकेंगे
उनमें ही कोई स्वप्न तुम्हारा भी होगा !

अपना ही चेहरा चुभता है काँटे जैसा
जब संबंधों की मालाएँ मुरझाती हैं ,
कुछ लोग कभी जो छूटे पिछले मोड़ों पर
उनकी यादें नीदों में आग लगाती है ,
कुछ राहों में बेचैन खड़े , कुछ बाँहों में बेहोश पड़े
उनमें ही कोई प्राण तुम्हारा भी होगा !

साधू हो या साँप , नहीं अन्तर कोई
जलता जंगल दोनों को साथ जलाता है ,
कुछ वैसी ही है आग हमारी बस्ती में
पर ऐसे में भी कोई-कोई गाता है ,
कुछ महफ़िल की जय बोलेंगे कुछ दिल के दर्द टटोलेंगे
उनमें ही कोई गीत तुम्हारा भी होगा !
   

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