Wednesday, August 19, 2015

जैसे कभी पिता चला करते थे, - भारत भूषण



जैसे कभी पिता चला करते थे,
वैसे ही अब मैं चलता हूँ !
भरी सड़क पर बायें-बायें
बचता-बचता डरा-डरा-सा,
पौन सदी कंधों पर लादे
भीतर-बाहर भरा-भरा सा,
जल कर सारी रात थका जो
अब उस दिये-सा मैं जलता हूँ !
प्रभु की कृपा नहीं कम है ये
पौत्रों को टकसाल हुआ हूँ ,
कुछ प्यारे भावुक मित्रों के
माथे लगा गुलाल हुआ हूँ,
'मिलनयामिनी' इस पीढ़ी-को
सौप स्वयं बस वत्सलता हूँ !
कभी दुआ-सा कभी दवा-सा
कभी हवा-सा समय बिताया
संत-असंत रहे सब अपने
केवल पैसा रहा पराया,
घुने हुये सपनों के दाने,
गर्म आसुओं में तलता हूँ !!

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