Saturday, January 25, 2014

ये गमे-दिल ! साथ मेरे तू कहाँ तक जायेगा - प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'

ये गमे -दिल ! साथ मेरे तू कहाँ तक जायेगा !
मैकदे तक जायेगा , या आस्ताँ तक जायेगा !!

खोज कर हारा , न पाया आज तक उसका पता ,
पर  मेरा बेलौस  नाला जाने जाँ तक जाएगा !

रह गया तनहा मुसाफ़िर जैसा मीरे कारवाँ ,
वो उफ़ुक के पार यानि बेकराँ तक जाएगा !

कारवाँ का हर मुसाफ़िर अपनी मंजिल पा गया ,
राहबर  से  कौन   पूछे  तू कहाँ  तक   जाएगा !

हमसफ़र को भी यकीं 'सिन्दूर' है भटका हुआ ,
रास्ता  कोई  भी हो  मेरे  मकां  तक  जाएगा !

प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'




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