कुछ
आंसू बन गिर जाएंगे, कुछ दर्द चिता तक जाएंगे
उनमें ही
कोई दर्द तुम्हारा
भी होगा !
सड़कों
पर मेरे पाँव हुए कितने घायल
यह
बात गाँव की पगडंडी बतलायेग,
सम्मान-सहित
हम सब कितना अपमानित हैं
यह
चोट हमें जाने कब तक तड़पायेगी,
कुछ
टूट रहे सुनसानों में कुछ टूट रहे तहखानों में
उनमें ही
कोई चित्र तुम्हारा
भी होगा !
वे
भी दिन थे, जब मरने में आनन्द मिला
ये
भी दिन हैं , जब जीने से घबराता हूँ ,
वे
भी दिन बीत गये हैं , ये भी बीतेंगे
यह
सोच किसी सैलानी-सा मुस्काता हूँ ,
कुछ
अँधियारों में चमकेंगे , कुछ सूनेपन में खनकेंगे
अपना
ही चेहरा चुभता है काँटे जैसा
जब
संबंधों की मालाएँ मुरझाती हैं ,
कुछ
लोग कभी जो छूटे पिछले मोड़ों पर
उनकी
यादें नीदों में आग लगाती है ,
कुछ
राहों में बेचैन खड़े , कुछ बाँहों में बेहोश पड़े
उनमें
ही कोई प्राण तुम्हारा भी होगा !
साधू
हो या साँप , नहीं अन्तर कोई
जलता
जंगल दोनों को साथ जलाता है ,
कुछ
वैसी ही है आग हमारी बस्ती में
पर
ऐसे में भी कोई-कोई गाता है ,
कुछ
महफ़िल की जय बोलेंगे कुछ दिल के दर्द टटोलेंगे
उनमें
ही कोई गीत तुम्हारा भी होगा !
Nice one !
ReplyDeleteएवर ग्रीन दर्द गीत
ReplyDeleteGrt
ReplyDeleteAwesome
ReplyDeleteBahut sundar kabita
ReplyDeleteBahut hi umda , mann ek dum kalpana se bhar jata hai in shabdo ko padh kar.
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