Tuesday, January 6, 2015

मुझको अहसास की चोटी.....................प्रोफे. रामस्वरूप ‘सिन्दूर’



मुझको अहसास की चोटी से उतारे कोई !
मेरी  आवाज़  में  मुझको  पुकारे कोई !

जिन्दगी दर्द सही, प्यार के काबिल न सही,
मेरे  रंगों  में  मेरा   रूप  संवारे  कोई !

जीती बाज़ी को हर के-भी मैं उदास नहीं,
मेरी  हारी हुई  बाज़ी से  भी हारे कोई !


राख कर डाली किसी नूर ने हस्ती मेरी,
राख मल-मल के मेरी रूह निखारे कोई !

तू नहीं, चाँद नहीं और सितारे भी नहीं,
किस तरह से य’ सियह रात गुजारे कोई !

चोट पर चोट से सियाह हुआ हर पहलू,
दम निकलता है अगर फूल भी मारे कोई !

बाँसुरी-जैसी  बजे  घाटियों  की  तनहाई,
किस क़दर प्यार से ‘सिन्दूर’ पुकारे कोई !

प्रोफे. रामस्वरूप ‘सिन्दूर’


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