Thursday, April 2, 2015

आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख - दुष्यंत कुमार

आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
घर अँधेरा देख तू, आकाश के तारे न देख !

एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाजुओं को देख, पतवारें न देख !

अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीकत की तरह,
यह हक़ीकत देख, लेकिन खौफ़ के मारे न देख !

वे सहारे भी नहीं अब, जंग लड़नी है तुझे,
कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख !

दिल को बहला ले, इज़ाज़त है, मगर इतना न उड़,
रोज सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख !

ये धुंधलका है नज़र का, तू महज़ मायूस है,
रोजनों को देख, दीवारों में दीवारें न देख !

राख, कितनी राख है चारों तरफ़ बिखरी हुई,
राख में चिंगारियां ही देख, अंगारे न देख !

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