तुमने
मुझे बुलाया है, मैं आऊँगा,
बंद
न करना द्वार देर हो जाए तो !
अनगिन
सांसों का स्वामी होकर भी निरा अकेला हूँ,
पाँव
थके हैं दिन-भर अपनी माटी के संग खेला हूँ;
चरवाहे
की रानी-जैसी सुन्दर मेरी
राह है,
मुझको
अपने से ज़्यादा सुन्दरता की परवाह है;
मेरे
आने तक मन में धीरज धरना,
चाँद
देख लेना यदि मन घबराए तो !
महकी-महकी
सांसों-वाले फूल बुलाते हैं मुझे,
पर
फूलों के संगी-साथी शूल रुलाते हैं मुझे;
लेकिन
मुझ यात्री का इन शूलों-फूलों से मोह क्या,
मेरे
मन का हंसा इनसे अनगिन बार छला गया;
मुझसे
मिलने की आशा में सह लेना,
मेरी
मंज़िल पर है रवि की धूप, बदलियों की छाया,
मैं
इन दोनों की सीमाओं के घर में भी सो आया;
लेकिन
मुझको तो छूना है सीमा उस श्रंगार की,
जिसके
लिए टूटती है हर मूरत इस संसार की;
मैं
न रहूँ तब मेरे गीतों को सुनना,
जब
कोई कोकिल जंगल में गाए तो !
धो
देते हैं बादल जब-तब धूल-भरे मेरे तन को,
लेकिन
इनसे बहुत शिकायत है मेरे प्यासे मन को;
मरुथल
में चाँदनी तैरती लेकिन फूल नहीं खिलते,
मन
ने जिनको चाहा अक्सर मन को वही नहीं मिलते;
मेरा
और तुम्हारा मिलना तो तय है,
शंकित
मत होना यदि जग बहकाए तो !
बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति।
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