Tuesday, December 13, 2022

चल पड़ा तो इक नदी के ढाल सा जीवन - अभिषेक औदिच्य

चल पड़ा तो इक नदी के ढाल सा जीवन.
रुक गया तो सिर्फ मैले ताल सा जीवन ..

साँस के चलते अनोखी दौड़ करते हम.
हाँ, स्वयं के बिम्ब से ही होड़ करते हम.
ट्रेडमिल पर एक झूठी चाल सा जीवन.
चल पड़ा तो इक नदी के ढाल सा जीवन..

आत्मा का, देह को क्षणभर निलय करना.
फिर जहाँ उद्गम वहीँ पर ही विलय करना.
थाह इसकी है नहीं, पातळ सा जीवन.
चल पड़ा तो इक नदी के ढाल सा जीवन.
रुक गया तो सिर्फ़ मैले ताल सा जीवन..

एक परिभाषा बताता है हमें विज्ञानं .
कोशिकाओं से बना तन ऊर्जा से प्राण.
मानवों का है कवक - शैवाल सा जीवन.
चल पड़ा तो इक नदी के ढाल सा जीवन..

लक्ष्य क्या है जन्म का? यह भेद तो खोलो.
है अगर मरना सभी को, क्यों जियें बोलो? 
प्रश्न यह कर्ता रहा बेताल सा जीवन.
चल पड़ा तो इक नदी के ढाल सा जीवन..

हम छिपें चाहे किसी कोने, किसी चप्पा.
मौत कर देगी अचानक एकदिन 'धप्पा'.
वृक्ष से अधजुड़ी इक डाल सा जीवन.
चल पड़ा तो इक नदी के ढाल सा जीवन.

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