कुंडली तो मिल गई है,
मन नहीं मिलता, पुरोहित !
क्या सफल परिणय रहेगा ?
गुण मिले सब जोग वर से, गोत्र भी उत्तम चुना है |
ठीक है कद, रंग भी मेरी तरह कुछ गेंहुआ है |
मिर्च मुझ पर माँ न जाने क्यों घुमाये जा रही है |
भाग्य से है घर-वर, बस यही समझा रही है |
भानु, शशि, गुरु, शुभ त्रिबल, गुण-दोष.
है सब कुछ व्यवस्थित,
अब न प्रति-पल भय रहेगा ?
रीति- रस्मों के लिये शुभ लग्न देखा जा रहा है |
क्यों अशुभ कुछ सोचकर, मुहं को कलेजा आ रहा है ?
अब अपरिचित हित यहाँ मंतव्य जाना जा रहा है |
किन्तु मेरा मौन 'हाँ' की ओर माना जा रहा है |
देह की हल्दी भरेगी घाव अंतस के अपरिमित ?
सर्व मंगलमय रहेगा ?
क्या सशंकित माँग पर सिन्दूर की रेखा बनाऊँ ?
सात पग भर मात्र चलकर साथ सदियों का निभाऊँ ?
यज्ञ की समिधा लिए फिर से नये संकल्प भर लूँ ?
क्या अपूरित प्रेम की सद्भावना उत्सर्ग कर दूँ ?
भूलकर अपना अहित-हित पूर्ण हो जाऊँ समर्पित ?
ये कुशल अभिनय रहेगा !
क्या सफल परिणय रहेगा ?
No comments:
Post a Comment