Monday, November 17, 2014

मधुर दिन बीते ...................... प्रोफे. रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

मधुर दिन बीते ......................

मधुर दिन बीते-अनबीते !
वर्तमान में नहीं, इन्हीं दोनों में हम जीते !

यादों के सरगम से ऊबे,
सपनों के आसव में डूबे,
आँखें रस पीती हैं, लेकिन होंठ अश्रु पीते !
मधुर दिन बीते-अनबीते !
वर्तमान में नहीं, इन्हीं दोनों में हम जीते !

आतप ने झुठलाई काया,
सर पर बादल-भर की छाया,
सूखी पौद हरी कर देंगें, क्या कपड़े तीते !
मधुर दिन बीते-अनबीते !
वर्तमान में नहीं, इन्हीं दोनों में हम जीते !

हम पनघट की राहें भूले,
मृग मरीचिकाओं में फूले,
कन्धों के घट पड़े हुये हैं, रीते के रीते !
मधुर दिन बीते-अनबीते !
वर्तमान में नहीं, इन्हीं दोनों में हम जीते !


प्रोफे. रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

No comments:

Post a Comment