Thursday, November 27, 2014

जिन राहों पर चलना है, तू उन राहों पर चल ! - प्रोफे. रामस्वरुप ‘सिन्दूर’




जिन राहों पर चलना है,
तू उन राहों पर चल !
कहाँ नहीं सूरज की किरणे, तूफ़ानी बादल !

मन की चेतनता पथ का अँधियारा हर लेगी,
मंजिल की कामना प्रलय को वश में कर लेगी,
जिस बेला में चलना है,
तू उस बेला में चल !
यात्रा का हर पल होता है क़िस्मत-वाला पल !

सपनों का रस मरुथल को भी मधुवन कर देगा,
हारी-थकी देह में नूतन जीवन भर देगा,
जिस मौसम में चलना है,
तू उस मौसम में चल !
भीतर के संयम की दासी, बाहर की हलचल !

उठे कदम की खबर ज़माने को हो जाती है,
अगवानी के लोकगीत हर दूरी गाती है,
जिस गति से भी चलना है,
तू उस गति से ही चल,
निर्झर जैसा बह न सके, तो हिम की तरह पिघल !



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