Saturday, April 11, 2020

दुश्मन को मात देने की क़ुव्वत नहीं गई - प्रोफ़े. रामस्वरूप सिन्दूर

शिद्द्त के साथ जीने की, आदत नहीं गई |
क़िस्मत से मेरी खुल के, अदावत नहीं गई |

जाने को उसके साथ सभी कुछ चला गया
पर छोड़ मुझको तन्हा मुहब्बत नहीं गई |

जो कुछ भी कमाया था गँवाया है इश्क़ में
पर पाक - साफ़ रूह की लागत नहीं गई |

विष पी के जी रही है ज़िन्दगी लम्हा-लम्हा
ये  और-और  जीने की  हसरत  नहीं  गई |

हाथों  में  हथकड़ी  है  मेरे  पाँव में  बेड़ियाँ
ख्वावों में उससे मिलने की हसरत नहीं गई |

'सिन्दूर ' तेरे  दाँव  लगाने  के  दिन  गये
दुश्मन को मात देने की क़ुव्वत नहीं गई |

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