Wednesday, April 8, 2020

कस कर और जियो - प्रोफ़े. रामस्वरूप सिन्दूर

रो-रो मरने से क्या होगा
हँस कर और जियो |
वृद्ध - क्षणों को बाहुपाश में
कस कर और जियो |

रक्त दौड़ता अभी रगों में, उसे न जमने दो,
बाहर जो भी हो, पर भीतर लहर न थमने दो,
चक्रव्यूह टूटता नहीं, तो
धंस कर और जियो |

श्वांस जहाँ तक बहे, उसे बहने का मौका दो,
जहाँ डूबने लगे, उसे कविता की नौका दो,
गुन्जन- जन्मे संजालों में
फंस कर और जियो |

टूटे सपने जीने का, अपना सुख होता है,
सूरज, धुन्ध-धुन्ध आँखें शबनम से धोता है,
ज्वार-झेलते अन्तरीप में
बस-कर और जियो |

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