Monday, April 13, 2020

किसी चीज की हद होती है - यश मालवीय

किसी चीज की हद होती है
जो तय हो उगते सूरज-सी
वही बात शायद होती है |

मुद्राएँ अंगारों-वाली करती दिखें चिरौरी
मानसून ने ठंडी कर दी धूप-सरीखी त्यौरी
जिसकी जड़ कांपती नहीं हो
वही शाख बरगद होती है |

भरी सुबह चेहरों पर मिलती शामों-वाली स्याही
जो   षड्यंत्रों  में   शामिल हैं  देते  वही  गवाही
सूक्ति रची जो सिंहासन ने
वही सूक्ति अनहद होती है |

लिए लाठियाँ कानूनों की हांक रहे बकरी
अपना बुना जाल है सारा कैसी अफरा-तफरी
जिन आँखों पर काले चश्मे
वही आँख संसद होती है |

अपनी परछाई पर शासन करने की बीमारी
छोटे से शीशे में उठती आदमक़द लाचारी
नींव कि जिसकी ईंट हिल रही
वही नींव गुम्बद होती है |  

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