Thursday, April 9, 2020

हिम की तरह पिघल - प्रोफ़े. रामस्वरूप सिन्दूर

जिन राहों पर चलना है
तू उन राहों पर चल |
कहाँ नहीं सूरज कि किरणें, तूफानी बादल |

मन की चेतनता पथ का अँधियारा हर लेगी,
मन्जिल की कामना, प्रलय को वश में कर लेगी,
जिस वेला में चलना है
तू उस वेला में चल |
यात्रा का हर पल होता है किस्मत - वाला पल |

सपनों का रस, मरुथल को भी मधुवन कर देगा,
हारी - थकी देह में नूतन जीवन भर देगा,
जिस मौषम में चलना है
तू उस मौषम में चल |
भीतर के संयम की दासी, बाहर की हलचल |

उठे कदम की ख़बर ज़माने को हो जाती है,
अगवानी के लोकगीत हर दूरी गाती है,
जिस गति से भी चलना है
तू उस गति से ही चल |
निर्झर-जैसा बह न सके, तो हिम की तरह पिघल | 

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