Wednesday, December 10, 2014

सब कुछ भूला..............- प्रोफे. रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

सब कुछ भूला, किन्तु न भूले वे लोचन अभिराम !
तुम्हारे लोचन ललित-ललाम !

चितवन में सपनों की छाया,
मृग-मरीचिकाओं की माया,
इन्द्रधनुष- धारे पलकों में छिपे रहें घनश्याम !
तुम्हारे लोचन ललित-ललाम !

बात न जो अधरों तक आये,
दृष्टि सहज में ही कह जाये,
वे दृग , संकेतों से ले-लें कैसे-कैसे काम !
तुम्हारे लोचन ललित-ललाम !

कब की उठी मधुर मधुशाला,
पर न अभी तक उतरी हाला
कभी-कभी मैं हस्ताक्षर में , लिख जाऊं खैयाम !
तुम्हारे लोचन ललित-ललाम !

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