Sunday, March 29, 2020

मुझको एहसास की चोटी से उतारे कोई - प्रोफ़े. रामस्वरूप सिन्दूर

मुझको एहसास की चोटी से उतारे कोई !
मेरी आवाज़ में ही मुझको पुकारे कोई !!

ज़िन्दगी दर्द सही, प्यार के क़ाबिल न सही,
मेरे    रंगों  में    मेरा   रूप    संवारे   कोई !

जीती बाज़ी को हार के भी मैं उदास नहीं,
मेरी  हारी  हुई  बाज़ी  से  भी  हारे  कोई !

राख कर डाली किसी नूर ने हस्ती मेरी,
राख मल-मल के मेरी रूह निखारे कोई !

तू नहीं, चाँद नहीं और सितारे भी नहीं,
किस तरह से ये' सियह रात गुजारे कोई !

चोट पर चोट से सियाह हुआ हर पहलू,
दम निकलता है अगर फूल भी मारे कोई !

बाँसुरी-जैसी बजे घाटियों की तनहाई,
किस क़दर प्यार से 'सिन्दूर' पुकारे कोई !

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