Tuesday, March 31, 2020

सीने से लगाना चाहिये - प्रोफ़े. रामस्वरूप सिन्दूर

झुक गये काँधों को फिर से आज़माना चाहिये |
इन को कुछ दिन बोझ तेरा भी उठाना चाहिये ||

हिचकियाँ आईं तो उस की, याद आकर रह गयी,
दिल ये कहता है उसे इस सिम्त आना चाहिये |

ये     दरो-दीवार   तेरे  कान  में  कहने  लगे,
अब तो तुझको और ही कोई ठिकाना चाहिये |

साथ तेरे कौन है इससे तुझे निस्बत नहीं,
ग़ैर को भी गमसुमारी का बहाना चाहिये |

तू बड़ा शायर है तो इन्सान उससे भी बड़ा,
ये हकीक़त अब जहाँ को, मान जाना चाहिये |

जो न समझे शेर, लेकिन साथ दे 'सिन्दूर' का,
ऐसा भोला दोस्त सीने से  लगाना चाहिये |

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