Saturday, December 17, 2016

तुमने मुझे बुलाया है, मैं आऊँगा - रमा नाथ अवस्थी

तुमने मुझे बुलाया है, मैं आऊँगा,
बंद न करना द्वार देर हो जाए तो !

अनगिन सांसों का स्वामी होकर भी निरा अकेला हूँ,
पाँव थके हैं दिन-भर अपनी माटी के संग खेला हूँ;
चरवाहे  की  रानी-जैसी  सुन्दर  मेरी  राह  है,
मुझको अपने से ज़्यादा सुन्दरता की परवाह है;
मेरे आने तक मन में धीरज धरना,
चाँद देख लेना यदि मन घबराए तो !

महकी-महकी सांसों-वाले फूल बुलाते हैं मुझे,
पर फूलों के संगी-साथी शूल रुलाते हैं मुझे;
लेकिन मुझ यात्री का इन शूलों-फूलों से मोह क्या,
मेरे मन का हंसा इनसे अनगिन बार छला गया;
मुझसे मिलने की आशा में सह लेना,
यदि तुमको दुनिया का दर्द सताए तो !


मेरी मंज़िल पर है रवि की धूप, बदलियों की छाया,
मैं इन दोनों की सीमाओं के घर में भी सो आया;
लेकिन मुझको तो छूना है सीमा उस श्रंगार की,
जिसके लिए टूटती है हर मूरत इस संसार की;
मैं न रहूँ तब मेरे गीतों को सुनना,
जब कोई कोकिल जंगल में गाए तो !

धो देते हैं बादल जब-तब धूल-भरे मेरे तन को,
लेकिन इनसे बहुत शिकायत है मेरे प्यासे मन को;
मरुथल में चाँदनी तैरती लेकिन फूल नहीं खिलते,
मन ने जिनको चाहा अक्सर मन को वही नहीं मिलते;
मेरा और तुम्हारा मिलना तो तय है,

शंकित मत होना यदि जग बहकाए तो !

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