Monday, December 12, 2016

सुधा भी पी नहीं जाती - रामस्वरूप सिन्दूर


सुधा भी पी नहीं जाती

आज को मैंने जिया कल कि प्रतीक्षा में !
एक छल है, दूसरे छल की प्रतीक्षा में !

बह गयी आकाशगंगा में करुण-गाथा,
गा रहा मैं अरुण छंदों में, वरुण-गाथा, 
ये नयन हैं, कौन-से जल की प्रतीक्षा में !
एक छल है, दूसरे छल की प्रतीक्षा में !


आँसुओं का अतल मन्थन कर चुका हूँ मैं,
रत्न-कोषों को अमृत से भर चुका हूँ मैं,
कल्पतरु भी है, किसी फल की प्रतीक्षा में !
एक छल है, दूसरे छल की प्रतीक्षा में !

अब तृषा को तृप्ति की सुधि भी नहीं आती,
वारुणी तो क्या सुधा भी पी नहीं जाती,
चल-अचल पल हैं, सकल-पल कि प्रतीक्षा में !

एक छल है, दूसरे छल की प्रतीक्षा में !

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