Tuesday, December 20, 2016

सब कुछ भूला ... - प्रोफे. रामस्वरूप सिन्दूर

सब कुछ भूला ...............................

सब कुछ भूला, किन्तु न भूले वे लोचन अभिराम !
तुम्हारे लोचन ललिल-ललाम !

चितवन में सपनों की छाया,
मृग-मरीचिकाओं की माया,
इन्द्रधनुष-धारे पलकों में छिपे रहें घनश्याम !
तुम्हारे लोचन ललिल-ललाम !


बात जो न अधरों तक आये,
दृष्टि सहज में ही कह जाये,
वे दृग, संकेतों से ले-लें कैसे-कैसे काम !
तुम्हारे लोचन ललिल-ललाम !

कब की उठी मधुर मधुशाला,
पर न अभी तक उतरी हाला,
कभी-कभी मैं हस्ताक्षर में, लिख जाऊँ खैयाम !
तुम्हारे लोचन ललिल-ललाम !

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