Thursday, December 15, 2016

घर के बूढ़े लोग - ज्योति शेखर

सारी उम्र जिन्हें ढोते हैं घर के बूढ़े लोग !
उनके लिए बोझ होते हैं घर के बूढ़े लोग !!

उन्हें पता है जब ये पकेगी तब वे नहीं होंगे,
फिर भी नई फ़सल बोते हैं घर के बूढ़े लोग !

बच्चे कहते हैं, तहज़ीब नयी क्या सीखेंगे,
ये सब तो बूढ़े तोते हैं घर के बूढ़े लोग !

कभी देखना एक उजाला फैला रहता है,
जहाँ फ़रिश्तों से सोते हैं घर के बूढ़े लोग !

कभी-कभी जब और किसी बूढ़े से मिलते हैं,
चुपके-चुपके क्यों रोते हैं घर के बूढ़े लोग !

इनको छुओ साँप बनकर तब  भी ठंडक देंगे,
चंदन का दरख़्त होते हैं घर के बूढ़े लोग !

बोझ पाप का बढ़े तो इनके क़दमों में रख दो,
तीरथ हैं, गुनाह धोते हैं, घर के बूढ़े लोग !

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