Sunday, December 18, 2016

तू है जहाँ, वहां आ पाना- प्रोफे. रामस्वरूप सिन्दूर

तू है जहाँ, वहां आ पाना
तन के वश की बात नहीं है,
इस तन से नाता टूटे तो
तुझसे मिलना हो सकता है !

आँखों में तैरती उदासी, लहराती आंसू की छाया,
ऐसा लगे, कि मेरी काया में उतरी है तेरी काया;
दर्पण ने इस विह्वलता को
सहज योग का नाम दिया है,
दर्पण   से    नाता  टूटे  तो
तुझसे मिलना हो सकता है !


गन्ध बने उच्छ्वास, प्राण का गुह्य द्वार बरबस खुल जाये,
तेरे  साये  से  लगते हैं, मुझको  मेरे-अपने  साये ;
उपवन ने इस दिवा-स्वप्न को
महामिलन तक कह डाला है,
उपवन   से   नाता  टूटे  तो
तुझसे मिलना हो सकता है !

मैं जागूँ तो नींद सताये, ओ’ सौऊ तो नींद न आये,
मंदिर में उदास हो जाऊं, मैखाने में जी घबराये;
यह मन मेरी इस गति को ही
दुर्लभ गति कह बहलाता है,
इस मन से नाता टूटे तो
तुझसे मिलना हो सकता है !

बेसुध कर जाती हैं सुधियाँ, चेतन कर जाती मदहोशी,
मैं विदेह की तृषा, तृप्ति की नजरों में करुणा का दोषी;
दर्शन मेरे चिर यौवन को
काल-सिद्धि कह कर छलता है,
दर्शन से नाता टूटे तो

तुझसे मिलना हो सकता है ! 

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