Thursday, December 22, 2016

मुझको तेरी तलाश है - प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'

मुझको तेरी तलाश है ,आवाज़ दे मुझे !
तू मेरे बहुत पास है , आवाज़ दे मुझे !!
मैं आइने में ख़ुद को जो देंखू तो तू दिखे ,
क्या खूब इल्तिबास है , आवाज़ दे मुझे !
हर सम्त बेपनाह शोरोशर है क्या हुआ ,
आवाज़ तेरी ख़ास है , आवाज़ दे मुझे !
कहते हैं लोग है ही नहीं तू वजूद में ,
तू है तो नाशनास है , आवाज़ दे मुझे !
मैं गुम हुआ हूँ संगतराशों की भीड़ में ,
कोई तो बुततराश है , आवाज़ दे मुझे !
मुझको तो रास आ गईं मेरी उदासियाँ ,
गर तू बहुत उदास है , आवाज़ दे मुझे !
उस वक़्त अंधेरों खो गयी थी हर सदा ,
ये लम्हा ज़ियापाश है , आवाज़ दे मुझे !
हर हाल में 'सिन्दूर' को इंसाफ दे सके ,
वो कौन सा इज्लास है , आवाज़ दे मुझे !


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