Tuesday, December 27, 2016

किसी चीज़ की हद होती है - यश मालवीय

किसी चीज़ की हद होती है
जो तय हो उगते सूरज-सी
वही बात 'शायद' होती है !

मुद्राएँ अंगारों-वाली करती दिखें चिरौरी
मानसून ने ठंडी कर दी धूप-सरीखी त्यौरी
जिसकी जड़ काँपती नहीं हो
वही शाख बरगद होती है !

भरी सुबह चेहरों पर मिलती शामों-वाली स्याही
जो षडयंत्रों में शामिल हैं देते वही गवाही
सूक्ति रची जो सिंहासन ने
वही सूक्ति अनहद होती है !

लिए लाठियाँ कानूनों की हांक रहे हैं बकरी
अपना बुना जाल है सारा कैसी अफ़रा-तफ़री
जिन आँखों पर काले चश्मे
वही आँख संसद होती है !

अपनी परछाईं पर शासन करने की बीमारी
छोटे से शीशे में उठती आदमक़द लाचारी
नींव कि जिसकी ईंट हिल रही
वही नींव गुम्बद होती है !

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