Tuesday, January 10, 2017

एक जरूरत - मुकुट बिहारी 'सरोज'

तम,  जरूरत से बहुत ज्यादा दिखाई दे रहा है,
अब मुझे सूरज उगाना ही पड़ेगा !

रात जैसी रात हो तो ठीक भी है,
एक दिन की बात हो तो ठीक भी है,
आज तो सूरज जनम से साँवला है,
और कुछ उलझा हुआ सा मामला है,

भ्रम, किरण की आत्मा को पातकी ठहरा रहा है,
अब मुझे निर्णय सुनाना ही पड़ेगा !

आज मावस बात वाली हो गई है,
चाँदनी क्या धूप काली हो गई है,
और जाने क्या कराएगा अँधेरा,
शाम के कपड़े पहिनता है सवेरा,

श्रम, भरे दरबार में नंगा नचाया जा रहा है,
अब मुझे तांडव  सिखाना ही पड़ेगा !

ज्योति का कोसों पता चलता नहीं हैं,
आरती तक में दिए जलते नहीं हैं,
अब नहीं सधता स्वरों से राग कोई,
क्या करे जप-तप-तपस्या-त्याग कोई,

गम, मकानों से गली की दोस्ती तुडवा रहा है,
अब मुझे आँगन लिपाना ही पड़ेगा !    

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