Thursday, January 12, 2017

मधुवास जिया जाये - रामस्वरूप 'सिन्दूर'

मधुवास जिया जाये

अधिवास या-कि निर्वास जिया जाये !
प्रति-पल कोई उल्लास जिया जाये !

उच्छवास अतल से अमृत खींच लाये,
नि:श्वास शून्य के अधरों पर गाये,
करुणा मन्वन्तर-व्यापी छन्द रचे
संवास या-कि वनवास जिया जाये !
बारहमासी मधुमास जिया जाये !


वय की संगणना अंकों की माया,
अन्त तक रहेगी सोनल यह काया,
मेरे तप का आतप सह लेती है,
संवेदन की मेघिल-मेघिल छाया,
विन्यास या-कि संन्यास जिया जाये !
ज्वार के शीश पर रास जिया जाये !

मुझ से, मुझ-तक मेरा संज्ञान गया,
कल्प का भेद, मैं क्षण में जान गया,
मैंने ऐसा नि:शब्द गीत गाया
जो बोधिसत्व मुझ में सन्धान गया,
विश्वास या-कि आभास जिया जाये !

केवल कवि का इतिहास जिया जाये !

No comments:

Post a Comment