Tuesday, January 24, 2017

तुम आये तो - प्रोफे. रामस्वरूप 'सिन्दूर'



तुम आये तो सावन आया, गये उठा तूफ़ान !
जल में तैरे रेगिस्तान !

कुछ कहना हो, कुछ कह जाऊं,
दिन-दिन-भर घर में रह जाऊं,
ताजमहल जैसा लगता है कलई पुता मकान !
जल में तैरे रेगिस्तान !

दर्पण देखूँ, देख न पाऊँ,
अर्थहीन गीतों को गाऊँ,
सूरज डूबे ही पड़ जाऊँ, सर से चादर तान !
जल में तैरे रेगिस्तान !


सोते में चौकूँ, डर जाऊँ,
साँस चले, लेकिन मर जाऊँ,
सिरहाने रखने को खोजूँ, आधी रात कृपान !
जल में तैरे रेगिस्तान !

मुश्किल से हो कहीं सबेरा,
चैन तनिक पाये जी मेरा,
जैसे-जैसे धूप चढ़े, होता जाऊँ नादान !

जल में तैरे रेगिस्तान !

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