Wednesday, January 11, 2017

बात कुछ भी हो मगर भाई नहीं - मुकुट बिहारी 'सरोज'

चाँद आया, चाँदनी आई नहीं
बात कुछ भी हो मगर भाई नहीं

प्यास ओंठों को जगाती ही रही
आँख सपनों को सजाती ही रही
रात-भर नाची बिचारी वर्तिका
पर पतंगों की सभा गाई नहीं
बात कुछ भी हो मगर भाई नहीं

बन गई चादर सितारों की कफ़न
पाँव तक फैला नहीं पाया पवन
इस तरह निकलीं खुशीं की अर्थियाँ
ओस अब तक भी समझ पाई नहीं
बात कुछ भी हो मगर भाई नहीं

देखकर पानी हिमालय तक चढ़ा
हर युवक  अरमान-शूली पर चढ़ा
बांध बलि के खून बंध तो गया
पर नई तस्वीर मुसकाई नहीं
बात कुछ भी हो मगर भाई नहीं

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