Saturday, July 19, 2014

मन तुम कहाँ चले यों जाते - कृष्ण मुरारी पहारिया

मन तुम कहाँ चले यों जाते
एक ठौर पर नहीं बैठते
दर-दर ठोकर खाते

जहाँ-जहाँ आकर्षण पाया
वहीँ चिपक रहते हो
फिर इच्छाओं की ज्वाला में
बिना वजह दहते हो
क्यों कर तुमको नहीं सुहाती
अपनी राम-मडैया
बेडा पार इसी से लगना
कुछ तो सोचो भैया

अपनों से दूरी तुम रखते
गैरों के गुन गाते

जहाँ-जहाँ तुम गये भला क्या
लडुआ वहां धरे हैं
भला दिखाओ कहाँ तुम्हारे
दोनों हाथ भरे हैं
यह दुनिया बाज़ार सरीखी
मोल खरीदो , बेचो
फूँक-फूँक तुम पांव धरो जू
पल में ऊचों-नेचो

बड़े-बड़ों को भूलभूलैंयां
के रस्ते भटकाते

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